ब्यापारी और गाँव
व्यापारी बन्ना गावोँमे अच्छा लग्ता हे शहरो मे नही, क्यों ना पुछे? वा घुमना नही मुशाफिर ही दोकान पर बीडी के लिए तरस्ते हेँ । अपनी राय मे ये हे की अक्सर मुसाफिर के जेब मे ज्यादा तर रोकडे नहीँ होते हे इसी लिए उसे छोरीया हसने लगी तो भी बहुत बढी चिज लगती है । बुजुर्क की सही मान्ना ये हे कि वो हमको क्या पता । अरे इन्सान तो अल्लाह ने वारिस किया है तकदिर खुदा जानेँ सबकी नइया तो एक है ना । लेकिन पैदावसी कौन इन्सान बुज्रुक होता है वो भि सही बात । पर देश और दुनिँया देअने वाले कभि ये लिफाफा कि मुकदर भि सुनलो आपका शिरका दर्दमे कोई समय किसिने झन्डुबाम डाला था क्या? अस्पतालका क्या परिसानी सबकी दुवा काम ना आसके? इसी लिए गलत रास्ता चुनो और बीडि पिना मत भूलो । क्यों की वो दुरदर्शनका छाता तो मुकदरका सिंकदर खुँखार डाकुको आरम मे तबर पर दिया था चायमे शख्खर सो जाता था हैवान । क्यू की तमन्ना कुछ और भि होगा भाइ मुझको क्या मालुम । माया ने तो छक्के कि पसिना छुटाए । रुप मे भि नही बदला । मैने भि पढ्ना शुरु किया था स्कुलमे नजाने छोरीका चालढाल भि छक्के जैसे हि लग्ता था दुृकान दारीकी आमा अभ्भी समझते हे ये बँदरको कौ...